गुडुच्यादि रसायनके
सेवनसे क्षय (TB), रक्तपित्त,
पैरोकी जलन, रक्तप्रदर,
मूत्राघात, मूत्रकुच्छ, वातकुण्डलिका ( मूत्राघात ), सब प्रकारके प्रमेह,
दारुण सोमरोग और जीर्ण ज्वर आदि दूर होते है। यह रसायन बल्य, वृष्योंमें उत्तम,
मेध्य और राजरोग ( दद्ध घोर रोगो ) का नाशक है। शस्त्रकरोंने इसका प्रयोग १ वर्ष
या ६ मास तक करनेका विधान किया है। यह उत्तम कल्प है।
सूचना: इस कल्पके
सेवन कालमें क्षार ( सज्जीखार, जवखार आदि ) और तेज खटाईका त्याग करना
चाहिये।
मात्रा: चूर्ण ३
माशे, मिश्री ३ माशे और घी ३ माशे मिलाकर दिनमे २
बार सुबह-शाम देवे, ऊपर गौका दूध पिलावे।
(1 माशा = .97 ग्राम)
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