रविवार, 29 अप्रैल 2018

महाज्वरांकुश रस के फायदे / Benefits of Maha Jwarankush Ras


महाज्वरांकुश रस वेदनाशामक, ज्वरध्न (बुखार का नाश करने वाला) और पाचक है। वातज्वर, कफज्वर, द्वंदज्वर, त्रिदोषज ज्वर और सब प्रकारके विषमज्वर (Malaria)- एकाहिक, द्वीयाहीक,तृत्यक, चातुर्थिक आदि का नाशक है। यह रस बिना ठंडके ज्वर और लगातार रहनेवाले और घटने बढ़नेवाले ज्वरमे अति उपयोगी है। ज्वरके साथ उत्पन्न अजीर्ण, पतले दश्त होना, पेटमे दर्द होना, पेटमे वायु (अफरा) होना इत्यादि विकारोंको भी दूर करता है। जीर्ण संधिवात (आमवात) मे यह रस लाभदायक है। इस रसके सेवन से कुच्छ प्रस्वेद आता है, वेदना शमन होती है; और आम पाचन होकर ज्वर दूर हो जाता है।

अजीर्ण या असातम्य भोजनसे पचनेन्द्रिय संस्थानके कार्यकी विकृति होकर उत्पन्न ज्वर पर इस रसका उत्तम उपयोग होता है। विशेषतः वेदना सहन न करनेवाले अधीर और चंचल प्रकृतिके रोगीको यह दिया जाता है।

सर्वांगमे कंप (सारा शरीर कांपना), ज्वरवेग असमान (बुखार चढ़-उतर करता हो), निंद्रानाश, बार-बार छींके आना, शरीर जकड जाना, हाथ पैर टूटना, संधि-संधिमे वेदना, मस्तिष्क और कपालमे दर्द, मुहमे बेस्वादुपन, मलावरोध (कब्ज), सारे शरीरमे भारीपन, हाथ पैर शून्य हो जाना, कानमे आवाज आना, दांत भींचना, व्याकुलता, शुष्क कास (खांसी), थोड़ी-थोड़ी वमन (उल्टी), रोंगटे खडे होना, तृषा (प्यास), चक्कर आना, प्रलाप, मूत्रका रंग पीला, लाल या काला-सा हो जाना, उदरमे शूल (पेटमे दर्द), आफरा तथा लक्षणवृद्धि होने पर असहनशीलता, रोगीका बड़-बड़ करते रहना इत्यादि वातप्रधान लक्षण होनेपर यह महाज्वारंकुश रस दिया जाता है।

ज्वरका मंद वेग, अंगमे जड़ता, आलस्य, निंद्रावृद्धि, अंग अकडा हुआ भासना, कपड़ा उतारनेपर शीत लगना, मुहमे बार-बार पानी आना, वमन (उल्टी), उदर (पेट)मे भारीपन, नेत्रके समक्ष अंधकार, सूर्यके तापमे बैठने या अग्निसे तापनेकी इच्छा, सूर्यके तापमे बैठनेसे अच्छा लगना, खांसी, अरुचि, बेचैनी, आदि कफप्रधान लक्षण होनेपर इस महाज्वारंकुशका अच्छा उपयोग होता है।

कफवात ज्वर होनेसे अंगमे जड़ता, मस्तिष्क जकड़ा हुआ भासना, हाड-हाड फूटना, तंद्रा, जुकामके समान नाकमे श्लेष्मकी उत्पत्ति होना, खांसी, प्रस्वेद न आना, हाथ पैर और नेत्रोमे दाह, भय लगना, क्रोध उत्पन्न होना, थकावट-सी लगना आदि लक्षणोमे ज्वर विशेषतः मर्यादित होता है। इस पर यह रसायन लाभदायक है।

सतत विषमज्वर अर्थात 7 या 10 दिन तक रहने वाले ज्वरमे अति जड़ता, हाथ-पैर टूटना, अति प्यास, आदि लक्षण प्रतीत होते है। इस ज्वरमे और एक दिन छोड़कर आने वाले तृत्यक ज्वरमे यह महाज्वरांकुश हितकारक है।

अजीर्ण या अपथ्य सेवनसे ज्वर आनेपर कोष्टस्थ विकृति होती है। फिर उबाक, लालास्त्राव, उदरमे वायु भर जाना, अरुचि, उदरमे मंद-मंद शूल (पेटमे थोड़ा-थोड़ा दुखना), थोड़ा-थोड़ा दस्त लगते रहना, मंदाग्नि, किसी भी प्रकारके भोजनकी इच्छा न होना, संधि-संधि मे वेदना आदि लक्षण प्रतीत होते है। इस ज्वर पर महाज्वरांकुश रस का अच्छा उपयोग होता है।

मात्रा: 1-1 रत्ती (रत्ती = 121.5 mg) अदरखके रस और शहदके साथ देवे। बच्चों को न दें। यह वच्छनाग प्रधान औषधि है। इसकी ज्यादा मात्रा नुकसान पहुंचा सकती है। यह हानी रहित औषधि नहीं है। बिना चिकित्सक की सलाह, इस औषध का उपयोग न करें। बुखार के लिये महासुदर्शन चूर्ण और सुदर्शन घनवटी उत्तम है और हानी रहित है।    

ग्रंथ: व.रा. (वसवराजीयम), र. त. सा. (रस तंत्र सार)

घटक द्रव्य: शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध वच्छनाग तीनों 1-1 भाग, शुद्ध धतूरे के बीज 3 भाग, सोंठ, कालीमिर्च और पीपल तीनों 2-2 भाग। भावना: अदरख और नीबू का रस।  
  



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